द फ़ॉलोअप टीम, दिल्ली:
अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति वर्ग को आरक्षण देने के लिए उच्चतम न्यायालय में दायर याचिकाओं पर सुनवाई जारी है। जस्टिस एल नागेश्वर राव की अध्यक्षता वाली तीन जजों की पीठ ने बुधवार को कहा कि वह एससी-एसटी के आरक्षण मुद्दे पर विचार नहीं कर रही है। वह सिर्फ इस बात पर विचार कर रही है कि प्रोन्नति में आरक्षण देने के लिए उच्च पदों पर कितना आंकड़ा लाना जरूरी है और यह आरक्षण देने से प्रशासनिक दक्षता तो प्रभावित नहीं होगी।
कैडर आधारित आरक्षण संभव नहीं
पीठ के सामने बिहार सरकार ने भी बहस की। कहा गया कि कैडर आधारित आरक्षण नहीं दिया जा सकता। इसे वर्ग के आधार पर ही दिया जा सकता है। राज्य सरकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता पीएस पटवालिया ने कहा कि कैडर आधारित आरक्षण देना संभव नहीं है। शीर्ष अदालत केंद्र सरकार और कुछ राज्यों की याचिकाओं पर विचार कर रही है, जिसमें उन्होंने प्रोन्नति में आरक्षण देने की अनुमति मांगी है। केंद्र सरकार ने कहा है कि संविधान के अनुच्छेद 16(4A) के तहत आरक्षित वर्ग को प्रोन्नति में आरक्षण दे सकती है।
उच्च पदों पर पिछड़ों के प्रतिनिधित्व पर चर्चा
अदालत ने कहा था कि 1997 के फैसले के तहत यह आरक्षण तब तक नहीं दिया जा सकता, जब तक यह न देखा जाए कि उच्च पदों पर पिछड़े वर्गों का पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं है। यह प्रतिनिधित्व तय करने के लिए संख्यात्मक आंकड़ा होना जरूरी है। अधिसूचना को चुनौती देने वाली यह याचिका सामान्य श्रेणी के कर्मचारियों ने डाली थी। इस फैसले के खिलाफ केंद्र सरकार और कई कर्मचारी सर्वोच्च अदालत पहुंचे थे।
एससी-एसटी को उच्च जातियों जितना योग्य नहीं बना सके : केंद्र
केंद्र सरकार ने बुधवार को उच्चतम न्यायालय से कहा कि करीब 75 साल बाद भी अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लोगों को योग्यता के उस स्तर पर नहीं लाया जा सका, जिस पर उच्च जातियां खड़ी हैं। अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव की अध्यक्षता वाली पीठ से कहा कि एससी-एसटी वर्ग के लोगों के लिए ग्रुप A की नौकरियों में उच्च पद प्राप्त करना अधिक कठिन है। अब समय आ गया है, जब उच्च अदालत को रिक्त पदों को भरने के लिए एससी, एसटी और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) को कुछ विशेष छूट देना चाहिए।